आजकल हम दिन के 10-12 घंटे लैपटॉप, कंप्यूटर, टीवी या फोन की स्क्रीन के सामने गुजारते हैं। ज्यादा स्कीन टाइम से हमारी आंखों पर बुरा असर होता है। हमारी आंखों में दर्द, आंखों के नीचे काले घेरे पड़ने लगते हैं। ये तो हुई वो बात जिसे हम पहले से ही जानते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इलेक्ट्रॉनिक स्क्रीन हमारी आंखों पर कैसे असर कर रही है। आखिर कैसे हमारी आंखें स्क्रीन की वजह से खराब हो जाती हैं।
ऑफिस मीटिंग हो या ऑनलाइन स्टडी फोन, लैपटॉप हर जीवन का अहम हिस्सा बन गया है। हालांकि, इससे आंखों को बहुत नुकसान पहुंचता है। ऐसा इसलिए क्योंकि हम जन्म से ही दूरदर्शी हैं, यानी हमें पास रखे समान की तुलना में दूर रखा सामान साफ तौर पर दिखाई देता है। जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमारी आंखें परफैक्ट विजन पाने के लिए विजुअल एन्वायर्नमेंट और जेनेटिक सिग्नल्स पर प्रतिक्रिया करती हैं। हालांकि, जिन लोगों को मायोपिया है, उनकी आंखें किसी तरह का एडजस्मेंट नहीं कर पातीं और उनकी आंखें की लंबाई बढ़ती जाती है। आसान शब्दों में कहें तो लेंस और रेटिना के बीच की दूरी बढ़ने लगती है।
कंप्यूटर और मोबाइल स्क्रीन पर कई घंटों तक काम करने से आंखों में होने वाले तनाव से बचने के लिए नीली रोशनी को फिल्टर करने वाले चश्मों की डिमांड बढ़ी है, लेकिन इसे लेकर हुई कई रिसर्च में इसके वैज्ञानिक सबूत नहीं मिले हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि नीली रोशनी का वास्तव में आंखों की समस्या से कोई लेना-देना ही नहीं है। 17 स्टडी के एनालिसिस में कहा गया है कि इन चश्मों को लेकर इस तरह का दावा सही नहीं है। ये आंखों को तनाव से राहत नहीं देते।